Friday, February 26, 2010

मेरी मौत के दिन

मेरी मौत के दिन
तुम्हें हिचकियाँ नहीं आयेंगीं ,
और
तुम्हारी आँखों से लावे की नदियाँ सूख गयी होंग़ीं -
उस दिन मैं मुर्गियों की तरह
दूकानों में बिक रहा होऊँगा ,
मांस के टुकड़ों में , तोल तोल कर ,
ग्लानि से भरा हुआ , धूप में कपड़ों के साथ
सूखता मिलूँगा -
और मेरी घोर नास्तिक आस्थायें
ईश्वर के सामने नंगी खड़े होने से कतरा रही होंगीं

उस दिन मैं
खाई के मुहाने पर
अपने कंधे पर आसमान लिये खड़ा रहूँगा
और तुम
नीचे झील में खड़ी मुझे पुकारती होगी
हमारे बीच सिर्फ़ एक कदम की दूरी होगी,
और उस एक कदम पर टिका होगा
सारी दुनिया का भविष्य -

तुम जान जाओगी-
मेरे अंत की पहचान के कई तरीके हैं
जब नदी में बहती हुई
मेरी टोपी मिले , और तुम
न देख पाओ मुझे चलते हुए
पानी के भीतर -
जब तितलियों के पंखों पर
बिछा रंग मेरी राख लगे
और हवा में बहते हुए मुझे
फेफड़ों में भरने पर घुटने लगे दम -
यकीन मानो ,
उस समय जलाए जा रहे
सारे पुतले -
और पेड़ों की तरह गिर रहे सारे धड -
मेरे ही होंगें
पर तुम चिंता मत करना
मेरी मौत की भनक भी नहीं लगेगी किसी को
आज से कई सालों तक
नदी , तितलियाँ और फुटपाथ
खामोश रहेंगे -

तुम मु्झे जलाना या दफ़नाना मत,
मुझे गला देना-
और बहा देना उसी नदी में -
मैं चला जाऊँगा पाताल में
सशरीर-
जिस दिन गर्मी
हो जायेगी बर्दाश्त से बाहर,
फ़िर जन्म लूँगा मैं -
उस दिन मैं भाप बनकर
चीर डालूँगा धरती का सीना-

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