स्वप्न यूँ मरते नहीं हैं
हो गया इतिहास लोहित
यदि हमारे ही लहू से
है खड़ा विकराल अरि
द्रुत छीनता विश्रान्ति भू से
बादलों की हूक से
पर्वत-हृदय डरते नहीं हैं
स्वप्न यूँ मरते नहीं हैं
तीन रंगों से बनी जो
है वही तस्वीर प्यासी
भारती के चक्षु कोरों
पर उगी कोई उदासी
किंतु ये मोती पिघलकर
धीरता हरते नहीं हैं
स्वप्न यूँ मरते नहीं हैं
यह नहीं दावा कि
सोते पर्वतों से चल पड़ेंगें
या कि सदियों से सुषुप्त
ललाट पर कुछ बल पड़ेंगें
पर अवनि के पार्थ
यूँ गाँडीव को धरते नहीं हैं
स्वप्न यूँ मरते नहीं हैं
है कठिन चलना अगर
कठिनाइयों के पत्थरो पर
विश्व हेतु उठा हलाहल
को लगाना निज- अधर पर
शंकरो पर विषधरो के
विष असर करते नहीं हैं
स्वप्न यूँ मरते नहीं हैं
-Alok Shankar
6 comments:
यह नहीं दावा कि
सोते पर्वतों से चल पड़ेंगें
या कि सदियों से सुषुप्त
ललाट पर कुछ बल पड़ेंगें
पर अवनि के पार्थ
यूँ गाँडीव को धरते नहीं हैं
स्वप्न यूँ मरते नहीं हैं
-बहुत बेहतरीन रचना. अद्भुत!
बहुत अच्छी रचना है।
वाह !! वाह !! वाह !!!
इस सुन्दर रचना ने तो अभिभूत कर दिया.यह प्रौढ़ रचना इंगित करती है कि लेखन क्षेत्र में आप बहुत दिनों से हैं.
Likhte rahen,shubhkamnayen.
शंकरो पर विषधरो के
विष असर करते नहीं हैं|
-आप बहुत ही अच्छा लिखते हैं
bahut hin umda likhte ho bhai....tumhari rachna ko mera sat sat naman..
iska arth kya hua "तीन रंगों से बनी जो
है वही तस्वीर प्यासी"
bahut achchhi rachanaa...shubhkaamna.
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