भीष्म - प्रतिग्या
दिनकर अपना तेज़ त्याग, शीतलता धारण कर लें
या शशि अपनी धवल ज्योति सारे पिण्डों से हर लें ;
अग्नि त्याग दे पवित्रता, गंगा त्यागे निज़ -धारा
अमृत कलश विष बरसाये, म्रृत हो जाये जग सारा।
स्वर्ग धरातल में जाये, किन्नर दानव हो जायें
या अपनें हि प्रिय मधुकर को कुसुम मारकर खायें;
मही डोल जाये लेकिन पुरुषार्थ नहीं डोलेगा
टूट जाय अम्बर लेकिन यह वचन नहीं टूटेगा;
मैं अष्टम गांगेय आज यह भीषण प्रण करता हूँ ,
ब्रह्मचर्य पालन करने का पावन व्रत धरता हूँ ॥
1 comments:
'भीष्म प्रतिज्ञा' ज्ञ के लिये बाराहा कूट है j~j
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