Monday, February 19, 2007

भीष्म - प्रतिग्या


दिनकर अपना तेज़ त्याग, शीतलता धारण कर लें


या शशि अपनी धवल ज्योति सारे पिण्डों से हर लें ;


अग्नि त्याग दे पवित्रता, गंगा त्यागे निज़ -धारा


अमृत कलश विष बरसाये, म्रृत हो जाये जग सारा।


स्वर्ग धरातल में जाये, किन्नर दानव हो जायें


या अपनें हि प्रिय मधुकर को कुसुम मारकर खायें;


मही डोल जाये लेकिन पुरुषार्थ नहीं डोलेगा


टूट जाय अम्बर लेकिन यह वचन नहीं टूटेगा;


मैं अष्टम गांगेय आज यह भीषण प्रण करता हूँ ,


ब्रह्मचर्य पालन करने का पावन व्रत धरता हूँ ॥


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